अनुष्का शर्मा
मलेरिया की रोकथाम के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से एक नए और अच्छे टीके की सिफारिश की गई है। टीके का नाम आर21/मैट्रिक्स-एम है। ये पहले के टीकों के मुकाबले सस्ता भी है, जिससे इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सकेगा। इसे भारत के सीरम इंस्टीट्यूट ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर विकसित किया है। सीरम इंस्टीट्यूट ने कहा है कि उसने सालाना 10 करोड़ टीके बनाने की तैयारी कर ली है। अगले दो साल में यह क्षमता दोगुना कर दी जाएगी।
लगभग एक जैसी हैं दोनों वैक्सीन
डब्ल्यूएचओ महानिदेशक ने भी इसका समर्थन किया था। डब्ल्यूएचओ ने इससे पहले आरटीएस, एस/एस01 नाम की वैक्सीन की सिफारिश की थी। मामले में डब्ल्यूएचओ महानिदेशक टेड्रोस एडनोम घेब्रेयेसस ने कहा कि दोनों वैक्सीन में ज्यादा फर्क नहीं है। दोनों ही असरदार हैं। हालांकि ये बताना मुश्किल है कि कौन ज्यादा असरदार है। दोनों टीकों को बच्चों में मलेरिया को रोकने के लिए सुरक्षित और प्रभावी पाया गया है।
2 साल पहले दुनिया को मलेरिया का पहला टीका मिला था
WHO ने 2021 में मलेरिया के पहले टीके RTS,S/AS01 को मंजूरी दी थी। WHO के डायरेक्टर जनरल डॉ. टेड्रोस एडनोम घेब्येयियस ने कहा- हमने 2 साल पहले मलेरिया की पहली वैक्सीन को मंजूरी दी थी। अब हमारा फोकस दुनियाभर में मलेरिया वैक्सीन बनाने के लिए फंडिंग के इंतजामों पर होगा, ताकि यह टीका हर जरूरतमंद देश तक पहुंच सके। इसके बाद संबंधित देशों की सरकारें तय करेंगी कि वे मलेरिया को कंट्रोल करने के उपायों में वैक्सीन को शामिल करती हैं या नहीं।
वैक्सीन से हर 10 में से 4 मामले रोके जा सकते हैं
WHO के डायरेक्टर जनरल घेब्येयियस ने कहा- RTS,S/AS01 और R21 में ज्यादा फर्क नहीं है। हम ये नहीं कह सकते कि दोनों में से कौन सी ज्यादा असरदार होगी। दोनों ही इफेक्टिव हैं।
यह वैक्सीन प्लाज्मोडियम फैल्सिपेरम को बेअसर कर देती है। प्लाज्मोडियम फैल्सिपेरम मलेरिया फैलाने वाले 5 पैरासाइट्स में से एक है और सबसे खतरनाक होता है। WHO के मुताबिक वैक्सीन से मलेरिया के हर 10 में से 4 मामले रोके जा सकते हैं और गंभीर मामलों में 10 में से 3 लोग बचाए जा सकते हैं।
2019 में दुनियाभर में मलेरिया से 4.09 लाख मौतें हुई थीं, इनमें 67% यानी 2.74 वे बच्चे थे, जिनकी उम्र 5 साल से कम थी। भारत में 2019 में मलेरिया के 3 लाख 38 हजार 494 केस आए थे और 77 लोगों की मौत हुई थी। सबसे ज्यादा 384 मौतें 2015 में हुई थीं।