ऐसा प्रतीत होता है कि देश में पहली बार एक नए युग का आरम्भ हुआ है। पहली बार विशाल भारत देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और सबसे बड़े प्रदेश उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी, योगी विचारधारा से प्रेरित है। लगभग दो सौ वर्ष के बाद ये लीक से हटकर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने लगे हैं। ये भी सच है कि एक लम्बे समय से अस्त-व्यस्त हो चुकी व्यवस्थाओं को व्यवस्थित करना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है और जनता की अपेक्षाएं बहुत अधिक है। बिना स्वतंत्र सोच के कोई भी सकारात्मक परिवर्तन लाना संभव नहीं है।
हम ये नहीं कहते कि सभी स्वतंत्र विचार सफ ल ही रहेंगे, पर इतना जरूर तय है कि कुछ स्वतंत्र विचार बहुत बड़ा बदलाव लाने में सक्षम हैं। आज से लगभग २५० वर्ष पूर्व ‘सोने की चिडिय़ा कही जाने वाली इस भारतभूमि में गुरूकुल शिक्षा पद्धति से शिक्षा प्रदान की जाती थी। अधिकतर गुरूकुलों की आचार्य महिलाएं थीं। उस समय मेडिकल काउंसिल, वेटेनरी काउंसिल,आयुर्वेदिक काउंसिल,यूजीसी,नर्सिंग काउंसिल, एआईसीटी, एनसीटीई, सीबीएसई, स्टेट बोर्ड आदि जैसी संस्थाएं नहीं हुआ करती थी और उस समय भी विश्व बाजार में हमारा निर्यात २०-२५ प्रतिशत की हिस्सेदारी में था और लोगों का जीवन स्तर संस्कार व मूल्य आधारित था।
आज इन सभी नियामक संस्थानों के आने के बाद हमें देखना होगा कि कोई विशेष सकारात्मक परिणाम प्राप्त नहीं हुए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि ये नियामक संस्थान इंस्पेक्टर राज के रूप में पूरे शिक्षण तंत्र को ना सिर्फ एक निश्चित पाठ्यक्रम में बांधे जा रहे हैं, बल्कि शिक्षण से सृजनात्मकता को खत्म सा ही कर दिया गया है। ये नियामक संस्थाएं अधिकतर समय इन्फ्रस्ट्रक्चर और अव्यवहारिक नियमों की पालना की दुहाई देकर शिक्षण क्षेत्र में एक भय का वातावरण बना देती हैं। हमें तो ऐसा प्रतीत होता है कि ये शिक्षण व्यवस्था अगर जनता के स्वविवेक पर छोड़ दी जाती तो वर्तमान में स्थापित हो चुके शैक्षणिक संस्थानों से निश्चित रूप से और अधिक बेहतरीन होती।
शिक्षण संस्थाओं में भय का वातावरण व अत्यधिक नियम बनाकर कार्य किया ही नहीं जा सकता। शिक्षण व्यवस्थाओं में सबसे महत्वपूर्ण तत्व है, तो वह स्वयं शिक्षक ही है और शिक्षक की पहचान उसके द्वारा तैयार किए गए विद्यार्थियों से किया जाना ही सम्भव है, परंतु आज शिक्षण संस्थान की पहचान इन्फ्रास्ट्रक्चर और बड़े विज्ञापनों से की जाने लगी है। अगर वास्तव में हमें शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना है, तो हमें सबसे अधिक ध्यान ना सिर्फ शिक्षण संस्थानों को ऑटोनोमी देने में करना होगा, बल्कि श्रेष्ठ टीचर्स तैयार करने में भी देना होगा। तभी हम अपना गौरवपूर्ण अतीत वापिस लौटा पाएंगे। शिक्षण क्षेत्र में भी नि:स्वार्थ भाव से कार्य करने वाले योगी विचारधारा से प्रेरित राजनेताओं और आचार्यों की आज बहुत ही बड़ी आवश्यकता है।
चलते-चलते एक और महत्वपूर्ण बात यह कहना चाहेंगे कि हर व्यक्ति के जीवन में सबसे बड़ी भूमिका उसकी मां की है। १४ मई को मदर्स डे आ रहा है। आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
प्रेम,स्नेह और सम्मान के साथ…
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