दो आत्माओं का पवित्र बंधन है –
विवाह दो आत्माओं का पवित्र बंधन है। विवाह के लाभों में मानसिक रूप से परिपक्वता और दीर्घायु, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की प्राप्ति प्रमुख है। इसके अलावा समस्याओं से जूझने की शक्ति और प्रगाढ़ प्रेम संबंध से परिवार में सुख शान्ति मिलती है। कुल मिलाकर विवाह संस्कार सारे समाज के सुव्यवस्थित तंत्र का मेरूदण्ड है।
विवाह में गठबंधन का का विधान क्यों ?
गठबंधन विवाह संस्कार का प्रतीकात्मक स्वरूप है। पाणिग्रहण के बाद वर के कंधे पर डाले सफेद दुपट्टे में वधू की साड़ी के एक कोने की गंाठ बांधी जाती है, इसे आम बोलचाल की भाषा में गठबंधन बोलते हैं। इसका अर्थ है – दोनों के शरीर और मन का एक संयुक्त इकाई के रूप में एक नई सत्ता की शुरूआत। अब दोनों एक-दूसरे के साथ पूरी तरह से बंधे हुए हैं और उनसे यह आशा की जाती है कि वे जिन लक्ष्यों के साथ बंधे हुए हैं उन्हें आजीवन निरंतर याद रखेंगे।
सात फेरे अग्नि के समक्ष ही क्यों?
विवाह में सात फेरों की रस्म अग्नि के समक्ष ही क्यों ली जाती है? क्योंकि एक ओर अग्नि जीवन का आधार है तो दूसरी ओर जीवन में गतिशीलता और कार्य की क्षमता तथा शरीर को पुष्ट करने की क्षमता सभी कुछ अग्नि के द्वारा ही आती है। अग्नि पृथ्वी पर सूर्य की प्रतिनिधि है और सूर्य जगत् की आत्मा और विष्णु का रूप है इसलिए अग्नि के समक्ष फेरे लेने का मतलब है, परमात्मा के समक्ष फेरे लेना। अग्नि हमारे सभी पापों को जलाकर नष्ट भी कर देती है इसलिए जीवन में पूरी पवित्रता के साथ एक अति महत्त्वूपर्ण रिश्ते का आरम्भ अग्नि के सामने ही करना सभी प्रकार से उचित है।
पत्नी को वाम अंग बैठाने की प्रथा क्यों?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पुरूष का जन्म ब्रह्मा के दाहिने कंधे से और स्त्री का जन्म बायें कंधे से हुआ है, इसलिए स्त्री को वामांगी कहा जाता है और विवाह के बाद स्त्री को पुरूष के वाम भाग में बिठाया जाता है। इस प्रकार बांयी ओर आने के बाद पत्नी गृहस्थ जीवन के मुख्य सूत्रधार बन जाती है और भविष्य में होने वाले हर शुभ कार्यों में पति के वाम भाग में बैठती है।
मांग में सिंदूर भरने की प्रथा क्यों?
विवाह के अवसर पर एक संस्कार के रूप में वधू की मांग में वर सिंदूर भरता है। मांग में सिंदूर भरने से स्त्री के सौन्दर्य में वृद्धि तो होती ही है यह मंगल सूचक भी है। इससे यह भाव प्रदर्शित होता है कि ब्रह्म ज्योतिर्मय है और उस ज्योति का रंग लाल है। देवीभागवत में भगवती ने स्वयं कहा है कि ब्रह्म और शक्ति एक ही है। हम दोनों मिलकर ही सृष्टि को जन्म देते हैं। देवी शक्ति को लाल रंग प्रिय है। सिंदूर में पारा जैसी धातु अधिकता में होने के कारण चेहरे पर जल्दी झुर्रिया नहीं पड़ती।
मंगलसूत्र का महत्त्व क्यों?
मंगलसूत्र में काले रंग के मोतियों की लडिय़ां, मोर व लॉकेट की उपस्थिति अनिवार्य मानी गई है। इसके पीछे मान्यता यह है कि लॉकेट अमंगल की आशंकाओं से स्त्री के सुहाग की रक्षा करता है तो मोर पति के प्रति श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है और काले रंग के मोती बुरी नजर से बचाते हैं। सोना शरीर में बल और औझ बढ़ाने वाली धातु हैं तथा समृद्धि का प्रतीक है। मंगलूसत्र का स्थान अन्य आभूषण नहीं ले सकते।
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