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प्रभावी निर्णय लेना प्रशासन का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है

हाल ही में मोदी सरकार का बड़ा फैसला हम सभी लोगों के सामने आया है। वास्तव में यह फैसला सूझबूझ, परिपक्वता एवं गहरे चिंतन का ही परिणाम हो सकता है। पीएमओ ने निजी क्षेत्र के एग्जीक्यूटिव, सामाजिक कार्यकत्र्ता व शिक्षाविदें को आईएएस अफसरों की बराबरी के पदों पर तैनात करने के लिए गाईडलाइन तैयार करने को कहा है। देश, समाज, कल-कारखानें और बड़े-बड़े संस्थानों में प्रबंधन (मैनेजमेंट) व प्रशासन (एडमिनिस्ट्रेशन) की बड़ी अहम भूमिका होती है।
मैनेजमेंट व प्रशासन अगर श्रेष्ठ है तो शांति, खुशहाली व समृद्धि प्राप्त की जा सकती है। अब हमें यह विचार करना होगा कि प्रबन्ध और प्रशासन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य क्या है? मैं इत्मीनान से इस प्रश्न के जवाब में यह कहना चाहूंगा कि निर्णय लेना ही सबसे प्रमुख कार्य है। निर्णय समझ, अनुभव व ज्ञान पर ही आधारित नहीं होना चाहिए बल्कि निर्णय तुरंत व मजबूती से लिया जाना चाहिए। इतिहास में यदि मोदी सरकार को याद रखा जाएगा तो निर्णय लेने की क्षमता के आधार पर याद किया जाएगा। पुरानी कुरीतियों व अव्यवस्थाओं को सुधारने के लिए बहुत बड़े अनुभव, दृढ़ इच्छा शक्ति व सूझ-बूझ के साथ निर्णय लेने की आवश्यकता होती है। सिविल सर्विस एग्जाम के दौरान पुस्तकीय ज्ञान व विवेचनाओं को आधार बनाया जाता है जिसे कोई भी एक ाग्रता के द्वारा हासिल कर सकता है, परन्तु वास्तविक ज्ञान और समझ तो अनुभव व संघर्ष से ही प्राप्त की जा सकती है। आज हम मोदी जी को ही देख लें तो पाएंगे कि ज्ञान का आशय पुस्तकीय ज्ञान नहीं, बल्कि दृढ इच्छाशक्ति, नैतिक सिद्धान्त व व्यवहारिक ज्ञान होता है। इसके अलावा एक और ऐतिहासिक फै सला लिया गया जो पूरे आर्थिक तंत्र को एक बड़े परिवर्तन की ओर ले गया है। व्यापार की मात्रा व तौर-तरीके बदले हैं तथा इस कारण नई कर प्रणाली की भी जरूरत थी। इतने बड़े भारतवर्ष को आधुनिक व्यवस्थाओं से युक्त जीएसटी लागू करना कोई सामान्य फैसला नहीं था। मुझे विश्वास है कि जीएसटी के बाद कुछ समय पश्चात व्यापार व सैंसेक्स में बेतहाशा वृद्धि होगी क्योंकि व्यापार में पारदर्शिता व स्वतंत्र प्रतिस्पद्र्धा बढ़ेगी। मोदी सरकार से यह अपेक्षा रहेगी कि शिक्षा के क्षेत्र में इसी तरह के प्रभावशाली कदम उठायें जाएं। परन्तु यह आवश्यक है कि यह फैसला राजनीतिक समझ वाला व्यक्ति ना ले बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में तथा निजी क्षेत्र में कार्यरत अनुभवी व्यक्ति जो भारतीय शिक्षा, संस्कृति व समाज की समझ रखते हैं, के द्वारा लिया जाए। इस संबंध में मुख्य बात यह कहना चाहेंगे कि लोकतंत्र की भावना के अनुसार शिक्षण संस्थान से सम्बन्धित चुनाव का अधिकार भी जनता व शिक्षण संस्थानों को ही दिया जाना चाहिए। इस संबंध में बनाए गए विभिन्न नियामक संस्थानों में व्याप्त भ्रष्टाचार को कम किया जाना चाहिए। आज जनता जागरूक है, परिपक्व है, शिक्षित है और इतनी सक्षम है कि तय कर सके कि किस शिक्षण संस्था को चुना जाए व किस संस्था को ना चुना जाये। मुझे आशा है कि कुछ ही समय में यह सामाजिक समझ बन जाएगी कि शिक्षा का संबंध अंकों व डिग्रियों से नहीं बल्कि रोजगार, साहस व संस्कार से होता है। देखिए ना, हमारी संस्कृति में सर्वश्रेष्ठ निर्णय लेने के लिए भगवान श्री कृष्ण जी को जाना जाता है, कृष्ण के निर्णय लेने की क्षमता जीवन के संघर्षो से ही आई थी। मैं आप सभी को आने वाले जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं।
आशा है फिर मिलेंगे प्रेम स्नेह व सम्मान के साथ…

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