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शहर की गंदगी के बारे में अखबार में पढ़कर विदेश की नौकरी छोड़ी।

अंजलि तंवर

मैं 5 साल से स्विट्जरलैंड में वेस्ट मैनेजमेंट पर काम कर रहा था। अच्छी सैलरी और हर तरह की सुविधा थी। किसी चीज की दिक्कत नहीं थी। एक दिन अखबार में छपी एक खबर पर मेरी नजर गई। जिसमें मेरे होमटाउन असम के तिनसुकिया जिले को सबसे गंदा शहर बताया गया था। खबर पढ़ने के बाद मुझे काफी तकलीफ पहुंची।

साल 2018 में मैंने नौकरी छोड़ी दी और अपने शहर की गंदगी मिटाने की मुहिम में जुट गया। आज मेरा शहर लगभग वेस्ट फ्री हो गया है, लोग जागरूक हो गए हैं। इतना ही नहीं अब असम के दूसरे जिले भी वेस्ट फ्री हो रहे हैं। लोगों को काम मिल रहा है, महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं। बदलाव की इस कहानी को गढ़ने वाले शख्स का नाम संजय गुप्ता है, जो लंबे वक्त से वेस्ट मैनेजमेंट पर काम कर रहे हैं।

पढ़ाई के दौरान ही वेस्ट मैनेजमेंट पर काम करना शुरू कर दिया था

संजय कहते हैं कि JNU में पढ़ाई के दौरान ही वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर मेरी दिलचस्पी बढ़ने लगी थी। कैंपस में जहां भी गंदगी दिखती, उसे साफ करने में हम लग जाते थे। तब हमारा मोटिव था कैंपस को जीरो वेस्ट बनाना और हम बहुत हद तक उसमें कामयाब भी हुए। इसके बाद मैंने तय किया कि आगे इसी फील्ड में करियर बनाऊंगा।

अपनी इस मुहिम की कहानी को लेकर संजय बताते हैं कि तीन साल पहले जब मुझे अपने होमटाउन की गंदगी के बारे में पता चला तो मैंने सरकार और जिले के अधिकारियों को लेटर लिखा।

उन्हें बताया कि मैं वेस्ट मैनेजमेंट पर काम कर रहा हूं और अब अपने राज्य और शहर के लिए कुछ करना चाहता हूं। इसको लेकर सरकार से पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिला और मैं असम लौट आया।

बहुत कम लोग अवेयर थे, जिसे जहां मन किया कचरा फेंक देता

यहां आने के बाद पता चला कि मुसीबत वाकई बहुत बड़ी है। शहर में गंदगी तो थी ही, साथ ही लोगों की आदतें भी सही नहीं थीं। जिसको जहां मन किया वहां कचरा फेंक देता था। सूखा कचरा और गीला कचरा सब मिक्स कर देते थे।

होटल और दुकानों के बाहर वेस्ट का ढेर लगा रहता था। बहुत कम लोग ही अवेयर थे। इसके बाद मैं नगर निगम के अधिकारियों से मिला और स्थानीय लोगों के साथ मिलकर अपनी एक टीम तैयार की।

सबसे पहले उन्हें वेस्ट मैनेजमेंट की ट्रेनिंग दी। सूखे और गीले कचरे का फर्क बताया। हर तरह के कचरे को कैसे अलग करना है, इसकी प्रोसेस समझाई और फिर अपने काम में जुट गए।

हमारी टीम लोगों के घर-घर जाकर वेस्ट कलेक्ट करने लगी। इसका असर भी दिखा और एक साल के भीतर ही शहर की आधी गंदगी साफ हो गई, लोग अवेयर होने लगे, वे इधर-उधर कचरा फेंकने की बजाए, डस्टबिन में वेस्ट इकट्ठा करने लगे।

फंड कहां से लाते हैं, सोर्स ऑफ इनकम क्या है?

CSR की तरफ से हमें कुछ फंड मिला है। उन्होंने वेस्ट कलेक्ट करने के लिए हमें 23 गाड़ियां उपलब्ध कराई हैं। कुछ मदद हमें नगर निगम से भी मिलती है।

इसके अलावा जिन घरों से हम वेस्ट कलेक्ट करते हैं उनसे 50 रुपए से लेकर 100 रुपए तक महीना हम चार्ज करते हैं। इसी तरह होटल वालों और दुकानदारों से भी हम कुछ चार्ज लेते हैं। इसका कोई रेट फिक्स नहीं है।

कई लोग पैसे नहीं देते हैं, फिर भी हम उनके यहां से वेस्ट कलेक्ट करते हैं। अभी करीब 20 हजार घरों तक हमारी टीम पहुंच रही है। इससे हर साल करीब 6 से 7 लाख रुपए कलेक्ट हो जाते हैं।

कई राज्यों में मेरा मॉडल अपनाया जा रहा है। जल्द ही हम बिहार में अपना प्रोजेक्ट शुरू करने वाले हैं।

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