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कोलकाता में महिलाये करेंगी दुर्गा पूजा

तानिया शर्मा

इस नवरात्रि पर कोलकाता में एक नया उदाहरण स्थापित होने जा रहा है। इतिहास में पहली बार सार्वजनिक दुर्गा पूजा चार महिला पुजारी करवाएंगी। दुर्गा पूजा पर नवाचार के लिए पहचान बना चुके साउथ कोलकाता क्लब ने यह फैसला लिया है। क्लब में पूजा कराने वाली 66 पल्ली पूजा समिति के प्रद्युम्न मुखर्जी बताते हैं कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि खूंटी पूजा (पंडाल बनाने की शुरुआती पूजा) से विजया दशमी तक किसी महिला पुजारी ने पूजा की हो। पर हमारे क्लब में चार महिलाओं की टीम यह नई परंपरा शुरू करेगी।

इस बार पूजा की थीम ‘देवी मां की पूजा माताओं द्वारा’ रखी है

इनकी पूजा करने की अपनी अलग शैली है। पूजा के मंत्रों के साथ रवींद्र संगीत, रजनीकांता, द्विजेंद्रगीत जैसे विभिन्न शैलियों के गीत विशेष आकर्षण रहेंगे। डॉ. नंदिनी भौमिक,रूमा रॉय, सेमांती बनर्जी और पॉलोमी चक्रवर्ती एक दशक से शहर में शादियां, गृह प्रवेश जैसे अहम आयोजन करवाती रही हैं, पर यह पहली बार होगा कि वे पुजारी के तौर पर मूर्ति पूजा करेंगी। मुखर्जी ने कहा, ‘हमें लगता है कि आधुनिक पीढ़ी को धर्मग्रंथों की व्याख्या उपयुक्त तरीके से करने की जरूरत है।’ उन्हें उम्मीद है कि लोग इस बदलाव को स्वीकार करेंगे, इसलिए इस बार पूजा की थीम ‘देवी मां की पूजा माताओं द्वारा’ रखी है।

उधर, नंदिनी बताती हैं कि हम पुरोहिताई को एक कला में बदलने के लिए व्यापक स्तर पर शोध कर रहे हैं। इस दौरान हमने पाया कि आजकल कई लोग पूजा की रस्मों में रुचि से शामिल होने के बजाय अन्य गतिविधियों से जुड़ना पसंद करते हैं। हमारा उद्देश्य ऐसे लोगों को रुचि के साथ पूजा कार्य में जोड़ना है।

इनके संघर्ष पर फिल्म भी बनी है

नंदिनी के जीवन और काम से प्रेरणा लेकर फिल्म ‘ब्रह्मा जानेन गोपोन कोम्मोटी’ (ब्रह्मा ही जाने, गोपनीय काम कौन से) भी बनी है। मुख्य किरदार की शादी एक संकीर्ण मानसिकता वाले परिवार में हो जाती है। जहां पूजा-पाठ और धार्मिक प्रथाओं में महिलाओं के विचारों को महत्व नहीं दिया जाता था, इन चुनौतियों को दूर करने के संघर्ष पर ही फिल्म का कथानक रचा गया।नंदिनी के जीवन और काम से प्रेरणा लेकर फिल्म ‘ब्रह्मा जानेन गोपोन कोम्मोटी’ (ब्रह्मा ही जाने, गोपनीय काम कौन से) भी बनी है। मुख्य किरदार की शादी एक संकीर्ण मानसिकता वाले परिवार में हो जाती है। जहां पूजा-पाठ और धार्मिक प्रथाओं में महिलाओं के विचारों को महत्व नहीं दिया जाता था, इन चुनौतियों को दूर करने के संघर्ष पर ही फिल्म का कथानक रचा गया।

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