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बच्चों की डाइट का रखें ख्याल

तानिया शर्मा

एक तरफ नानी-दादी हमें बच्चों की परवरिश के हुनर सिखाती हैं, तो दूसरी ओर डॉक्टर कुछ और ही सलाह देते हैं। ऐसे में कन्फ्यूज होना स्वाभाविक है, लेकिन बच्चे की सेहत के लिए हर मां बेस्ट से बेस्ट ऑप्शन ही चुनना चाहती है। खासकर जब खाने की बात हो। बच्चों के डाइट चार्ट के बारे में बता रहे हैं पीडियाट्रिक्स एंड नोनटोलॉजिस्ट डॉ. मेजर सुधांशु तिवारी।

शहद

डॉ. तिवारी कहते हैं कि शहद एक साल या उससे कम के बच्चे को नहीं देना चाहिए, क्योंकि मां का दूध स्वाभाविक रूप से मीठा होता है। शहद में क्लॉस्ट्रिडियम बोटुलिनम बैक्टीरिया होता है जो बोटुलिनम नामक गंभीर स्थिति का कारण बन सकता है। यह एक गंभीर बीमारी है जो अन्य लक्षणों के साथ मसल्स कमजोर और सांस की प्रॉब्लम बनती है।

चीनी

चीनी सभी उम्र के बच्चों के लिए नुकसानदेह है। चीनी बच्चे के सेहत पर अच्छा असर नहीं डालती। इसके अलावा, बढ़ते बच्चों का ज्यादा चीनी खाना उनके दांतों में कीड़ा लगने का कारण बनता है। यह प्रतिरक्षा को भी दबा देता है और बच्चों को मोटापा, शुगर और दिल की बीमारी जैसी लाइफस्टाइल बीमारियों से ग्रस्त करता है।

नमक

शिशु को शुरुआत में नमक की जरूरत नहीं होती, क्योंकि रोजाना की उनकी नमक की जरूरत मां के दूध या फार्मूला से पूरी होती है। अगर आप नन्हें शिशु को नमक देते हैं तो इसका असर उसकी किडनी पर पड़ सकता है। बचपन में ज्यादा नमक वाली डाइट देने से ब्लड प्रेशर, ऑस्टियोपोरोसिस और सांस की प्रॉब्लम होती है।

गाय का दूध

 शिशुओं को न्यूट्रिशन की जरूरत होती है और उन्हें ये सब मां के दूध से मिलता है। गाय के दूध में बहुत ज्यादा प्रोटीन होता है जिस कारण शिशु का नाजुक डाइजेशन सिस्टम प्रभावित होता है और इससे उन्हें एलर्जी हो सकती है। इस सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कोशिश करें कि 1 साल से कम उम्र के शिशु को गाय का दूध न दें।

बिस्किट

हम अक्सर बच्चों को बिस्किट खिलाते हैं। ज्यादातर बिस्किट मैदे से बनाए जाते हैं। यहां तक कि जो कंपनी यह दावा करती है कि बिस्किट ओट्स और वीट से बनाए गए हैं, उनमें मैदा भी होता है। इस वजह से बिस्किट को अवॉइड करना ज्यादा बेहतर है। वैसे तो एक साल से ज्यादा उम्र के शिशु को भी बिस्किट नहीं देना चाहिए, लेकिन आप चाहें तो शिशु को ऑर्गेनिक कुकीज दे सकते हैं।

प्रोसेस्ड बेबी फूड

बाजार में आसानी से उपलब्ध बेबी फूड मां के लिए ऑप्शन है। लेकिन इसका दूसरा पक्ष देखें तो यह लंबे समय तक स्टोर में रहते हैं। इसके इंग्रिडेंट को समझना मुश्किल है और आपको यह कभी पता नहीं चलता कि ये कब से स्टोर में है। जब शिशु यह डाइट लेता है तो उसे फ्रेश होम फूड के न्यूट्रिशन नहीं मिलते। इसमें कोई शक नहीं है कि न्यूट्रिशन, सफाई और सुरक्षा के संबंध में, घर के बने मिश्रण, स्टोर से खरीदे गए डाइट से बेहतर होते हैं।

डीप फ्राई फूड- बच्चों को समोसे, चिप्स या तले हुए नाश्ते से दूर रखें। शिशु का पेट जल्दी भर जाता है जिस कारण वह ठीक से खाना नहीं खा पाता। अगर आप बच्चे को इस तरह का कुछ देना चाहते हैं, तो फ्राइंग के बजाय इसे पकाने की कोशिश करें।

चाय या कॉफी- छह महीने से पहले शिशु को केवल मां का दूध ही देना चाहिए। चाय और कॉफी जैसे कैफीन युक्त लिक्विड छोटे बच्चों को नहीं दिया जाना चाहिए। खास तौर पर एक साल से कम उम्र के बच्चों को। कॉफी से शिशु के पेट में दिक्कत हो सकती है और चाय में मौजूद टैनिन शिशु को आयरन अवशोषित करने से रोकती है।

चीनी वाली मिठाई

मिठाई कैलोरी से भरी होती है, जो चीनी और घी के कारण होता है। भारतीय मिठाई अक्सर डीप फ्राई भी होती है, ये बच्चे का पेट भर देती है, जो हेल्दी डाइट नहीं है। इसके अलावा, इतनी छोटी उम्र में मिठाई का सेवन करने से बच्चे को इसकी आदत हो जाती है, जिसे बाद में छोड़ना मुश्किल होता है।

एलर्जिक फूड

बच्चे में एलर्जी को ट्रिगर करने वाली डाइट की पहचान तभी की जा सकती है जब बच्चे ने उन्हें टेस्ट किया हो। यही वजह है कि बच्चे की डाइट में कुछ नया देते समय 3-दिन के नियमों का पालन करना चाहिए। डाइट के साथ यह ख्याल रखना जरूरी है कि कोई एलर्जी तो नहीं है।

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