स्वामी शिवानंद सरस्वती के मुताबिक मन भोजन के सुक्ष्म सार से बनता है इसलिए जिन मनुष्यों से भोजन प्राप्त होता है उनसे मन आसक्त हो जाता है। यदि आप कुछ महिनों तक अपने किसी मित्र के साथ रहें और उसी का भोजन करें तो उस अन्नदाता मित्र में आपका मन आसक्त हो जाएगा। यही कारण है कि सन्यासी को 3 या 5 घरों से भिक्षा पर निर्वाह करने का नियम शास्त्रों में हैं । इस प्रकार वह लालच और लत से बचता है और एक गांव से दूसरे गांव में फिरता है। लालच और लत बंधन लाती है । लालच मृत्यु है और ये सारी बुराइयों की जड़ है। इसलिए मनुष्य को लालच और लत से दूर रहना चाहिए और अपने कर्म पर निर्भर होना चाहिए और ईश्वर पर विश्वास रखना चाहिए ।
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