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मंगल पर उतरने को BITS स्टूडेंट्स ने बनाया स्पेशल रोवर

झुंझुनूं जिले की बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (बिट्स) पिलानी के छात्रों ने मंगल ग्रह पर उतारने के लिए तीन पहिए का एक विशेष रोवर बनाया है। कार्बन फाइबर से बना रोवर वजन में काफी हल्का है। साथ ही 500 किलो तक भार सह सकता है। रोवर पैडल से चलेगा। खास बात ये है कि इसे दो यात्री एक-दूसरे की विपरीत दिशा में बैठकर भी रन कर सकते हैं।बिट्स के 7 छात्रों ने इस खास रोवर को अमेरिका में नासा के एक कॉम्पिटिशन में पार्टिसिपेट करने के लिए तैयार किया। यह कॉम्पिटिशन 20,21,22 अप्रैल को था। 25 अप्रैल को अवॉर्ड सेरेमनी हुई।अवॉर्ड सेरेमनी में बिट्स के छात्रों के इस प्रोजेक्ट को एशिया पैसेफिक में पहला अवॉर्ड हासिल हुआ। जबकि ओवरऑल परफोर्मेंस के हिसाब से इसे दुनिया में 12वां स्थान मिला। नामा में मिले अवॉर्ड से छात्रा काफी खुश हैं।
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रोवर को तैयार करने वाले 7 छात्रों की टीम का नाम इंस्पायर्ड कार्टर्स ग्रेविटी रखा गया। अमेरिका के नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) में प्रेजेंटेशन के लिए ये छात्र 7 महीने से लगातार इस रोवर पर काम कर रहे थे।अमेरिका के अलबामा के हंट्सविले में नासा मार्शल स्पेस फ्लाइट सेंटर में नासा ह्यूमन एक्सप्लोरेशन रोवर चैलेंज-2023 नाम से यह कार्यक्रम 20 से 22 अप्रैल तक हुआ था। इसमें 8 देशों की 61 टीमों ने भाग लिया था।

टीम के छात्रों ने बताया – हम लगातार 3 साल से इस कॉम्पिटिशन में भाग ले रहे थे। नासा की ओर से टास्क दिया गया था कि ऐसा रोवर बनाना है जो मंगल की सरफेस पर ट्रैवल कर सके और मानव चलित हो।इसके लिए हमने 6-7 महीने लगातार रोवर पर काम किया। इसका डिजाइन हमने पिलानी में ही तैयार किया। इसकी मैन्यूफैक्चरिंग भी यहीं की और कैंपस में ही टेस्ट किया। इसके पार्ट्स के लिए हमने कई बार दिल्ली के चक्कर काटे। वहां एवी इंजीनियरिंग वर्क्स से हमें मदद मिली।

हमारा रोवर 65 किलो का है और 500 किलो तक वजन झेल सकता है। सबसे बड़ी 2 बातें हैं जिसकी वजह से हमें अवॉर्ड मिला। पहली- हमने इसके व्हील्स थ्रीडी प्रिंटेड रखे। यह प्रयोग किसी भी दूसरी टीम ने नहीं किया था। दूसरी- हमने इसे इलेक्ट्रिकल पावर्ड रखा, मैकेनिकल नहीं। छात्रों ने कहा- हमारी इस मेहनत में संस्था के डायरेक्टर प्रो. सुधीर कुमार बराई और प्रो. मनोज सोनी ने काफी मदद की, हमें प्रेरित किया और हर कदम पर साथ दिया।
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छात्र ने बताया कि हमने इसमें एल्युमीनियम और कार्बन फाइबर का यूज किया। इसलिए यह वजन में हल्का है। इसके लिए हमें 50 हजार रुपए की स्पॉन्सरशिप मिली थी। प्रोजेक्ट में छात्रों का मार्गदर्शन करने वाले प्रो. मनोज सोनी ने कहा कि मैं इस टीम का इंचार्ज रहा। हमारी टीम अमेरिका गई और नासा में सफलता हासिल की। नासा के गाइडेंस के अनुसार रोवर ऐसा हो जो किसी सरफेस से सेंपल कलेक्ट कर सके, मैनुअल पावर से चले। बच्चे इसी तरह का रोवर तैयार करने में सफल रहे।

इन विद्यार्थियों ने मिलकर बनाया रोवर :-

यह रोवर कनवा कश्यप (बेंगलुरु), साइना गोधा (इंदौर), अर्थव श्रीवास्तव (नोएडा), अर्नब सिंह (नई दिल्ली), रोहित (विशाखापट्टनम), समकित जैन (मुरादाबाद), अर्थवा रामदास (बेंगलुरु) ने  मिलकर  बनाया है।

 

राधिका अग्रवाल

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