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तीर्थ क्या है, देवभूमि भारत में तीर्थों का महत्व

भारत धर्मप्राण देश है। भारत का धर्म और समाज, शिक्षा और सभ्यता, आचारानुष्ठान- सभी कुछ ऋषियों द्वारा उपलब्ध सत्य की नींव पर खड़े हैं।   हमारे सभी तीर्थस्‍थान ऋषियों और सिद्धों की साधना भूमि रहे हैं। ये स्थान महान आध्यात्मिक तथा तप:शक्ति के अक्षय केंद्र हैं। यही वजह है कि भारत के तीर्थस्थानों के साथ सभी भारतीय का अटूट संबंध है। इस संबंध को तोड़ने की हिम्मत किसी में नहीं है। एक ओर इन तीर्थों तथा सिद्धपीठों से भारतीय नर-नारियों का संबंध तोड़ना कठिन है, उसी प्रकार संबंध-टूटने पर भारत का पतन अनिवार्य है। भारत की भाव-लीला में यवनिका गिर जाएगी।kumbhmela-jalaanjali

 तीर्थों का महत्व
तीर के किनारे रहता है, इसलिए तीर्थ। सुख-दु:ख, रोग-शोक, भय-मोह पीड़ित मानव दैनिक जीवन में काफी परेशान और जर्जर रहता है। जब उसका हृदय सहारा के रेगिस्तान की तरह जलने लगता है, जब उसके सुख की कल्पना, आशा और आनंद के आकाश-कुसुम एक-एक कर झर जाते हैं, मानव-हृदय प्रेत-लीला भूमि बन जाता है, शांति और सांत्वना की पिपासा से मानव जब त्राहिमाम्-त्राहिमाम् चीत्कार करते हुए धरती के गगन-पवन को मथने लगता है, तब जहां जाने पर चित्त असीम, अनंत, अपरिमेय समुद्र में शांति की स्थिर लहरें, गंभीर, निस्तब्ध, शीतल, समाधिस्थ हो जाता है- वही तीर्थ है। संसार-श्मशान के किनारे रहने वाले जीवों के हृदय में अनंत ज्ञानमय, अनंत आनंद, कल्याण का निलय तथा परमात्मा का अनिर्वचनीय स्पर्श कराता है, वही तीर्थ है। यही वजह है कि गृहस्थी की ज्वाला में जलने वाले लोग तीर्थ की ओर शांति की खोज में, सांत्वना पाने की आशा में भागते हैं।
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