आज इंटरनेशनल टाइगर डे है। उत्तराखंड के लिए यह दिन खास है। क्योंकि बाघों के लिए सबसे मुफीद मानी जाने वाली जगह कार्बेट नेशनल पार्क हमारे पास है। यही वजह है कि बाघों की संख्या के मामले में हम देश में दूसरे नंबर पर हैं। लेकिन बाघों की मौत के मामले बढ़ रहे हैं उसे देखकर कहना मुश्किल है कि हम बहुत दिन तक दूसरे नंबर पर बने रहेंगे। पिछले छह महीनों के आंकड़े देखें तो उत्तराखंड में हर महीने औसतन एक बाघ का शिकार हुआ है। इसके अलावा 5 बाघ अन्य कारणों से मारे गए हैं। जनवरी से जून 2016 के बीच बाघों के मरने की सबसे ज्यादा 19 घटनाएं मध्यप्रदेश में हुई। जिसके बाद उत्तराखंड का ही नंबर आता है।
बाघ संरक्षण पर करोड़ों रुपए बहाने के बाद भी शिकारियों को रोक पाना वन विभाग के लिए मुश्किल साबित हो रहा है। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी के आंकड़े बताते हैं कि मौजूदा वर्ष के छह महीने में ही देश में 81 बाघों की मौत हो चुकी है। उत्तराखंड में कार्बेट व तराई के जंगलों में मौजूद बाघ शिकारियों के निशाने पर हैं। शिकार की सभी घटनाएं इन्हीं इलाकों के आसपास हुई। आपसी संघर्ष, सड़क हादसे में एक-एक बाघ मारा गया। दो की प्राकृतिक मौत जबकि रामनगर डिविजन में एक बाघ की सांप के काटने से मर गया।
2010 में हुई टाइगर डे की शुरुआत
रूस के शहर सेंट पीटर्सबर्ग में 29 जुलाई 2010 में टाइगर समिट का आयोजन किया गया। दुनिया के 14 देशों ने इसमें भाग लिया जहां बाघ पाए जाते हैं। टाइगर-डे मनाने का उद्देश्य़ बाघ संरक्षण के प्रति लोगों को जागरुक करना व बाघ के लिए अच्छे वासस्थलों को विकसित करना है। पूरी दुनिया में 3948 बाघ बचे हैं जिनमें से 1706 भारत में है।
संकरे हो रहे फॉरेस्ट कॉरीडोर
बाधित हो रहे वन्य जीव कॉरीडोर भी बाघ के आवागमन को प्रभावित कर रहे हैं। मोतीचूर-कांसरो के बीच तीन साल से फ्लाईओवर नहीं बन पाया है। जबकि यह इलाका टाइगर रिजर्व के तहत है। गौला नदी कारीडोर पर बसी आबादी ने तराई के जंगलों में बाघ के कदम रोके हैं।