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होली क्यों मनाई जाती है ?
होली क्यों मनाई जाती है ?

होली क्यों मनाई जाती है ?

राधिका अग्रवाल

त्योहार भारतीय जीवन-शैली का अभिन्न हिस्सा हैं, यहाँ कई तरह के रंग-बिरंगे व विविथतापूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं। इनमें से आपसी प्रेम और सद्भावना की भावना को मजबूत करने वाला होली का पर्व विशेष महत्व रखता है। विविधतापूर्ण संस्कृति वाले भारत देश में होली एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो कि जीवन के उत्साह, उल्लास और उमंग को बनाए रखने का काम करता है।

होली का त्योहार कब मनाया जाता है ?

होली “रंगो का त्योहार” के नाम से भी जाना जाता है, हिंदुओं के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है। फाल्गुन (फागुन) मास की पूर्णमासी के दिन होलिका दहन किया जाता है और इसके अगले दिन चैत्र (चैत) मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को रंगोत्सव यानी होली का त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार दुनिया भर के लोगों के द्वारा बेहद ही जोश व उत्साह के साथ मनाया जाता है। हालांकि यह हिंदुओं का त्योहार माना जाता है, लेकिन विभिन्न समुदायों के लोग साथ मिलकर, उत्साह और उमंग के साथ बड़ों को भी बच्चा बना देने वाले इस त्योहार में मनोरंजक कार्य करते नजर आते है।

होली क्यों मनाई जाती है ?

होली शुरुआत से ही एक पौराणिक कथा से जुडी है। विष्णुपुराण की एक कथा के अनुसार दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यप ने अपने राज्य में विष्णु पूजा प्रतिबंधित कर रखी थी। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त निकला और वह दिन-रात विष्णु भगवान की भक्ति में लीन रहता था । दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यप को यह पसंद नहीं था। ऐसे में जबहिरण्यकश्यप प्रह्लाद को विष्णु भगवान की भक्ति करने से रोक पाने में असफल होने लगे तो उन्होंने प्रह्लाद को मारने का आदेश दिया। हाथी के पैरों तले कुचलने और पहाड़ से फेंककर भी जब प्रहलाद नहीं मार तो हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की मदद से प्रह्लाद को जलाकर मारने की योजना बनाई।होलिका को यह वरदान मिला था कि अग्नि में वह नहीं जलेगी। इसलिए लकड़ियों के ढेर पर वह प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठ गई और उसमें आग लगा दी गई। इस होलिका की गोद में बैठा बालक प्रह्लाद विष्णु भगवान का नाम जपता रहा और उसका बाल भी बाँका नहीं हुआ, जबकि वरदान प्राप्त होलिका अपनी गलत विचारो के कारण जलकर भस्म हो गई। बुराई पर अच्छाई की जीत की याद में तभी से ही होली का त्योहार मनाया जा रहा है।

होली कैसे मनाई जाती है ?

यह रंगों का त्योहार मुख्य रूप से दो दिन मनाया जाता है, जिसके पहले दिन होलिका जलाई जाती है। होलिका दहन का पहला काम एक डंडा गड़ना होता है जो की होलिका का प्रतीक माना जाता है। डंडे को किसी सार्वजनिक स्थान पर गाड़ा जाता है, इसके लिए काफी दिन पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती है। होली का पहला दिन होलिका दहन कहलाता है।इस दिन गाड़े हुए डंडे के पास बहुत सारे लकड़ी इकट्ठी की जाती है, जो की लोग अपने अपने घरों से लाकर इकठ्ठा करते हैं। गाड़े हुए डंडे (और लकड़ियों) के पास सुबह से ही विधिवत पूजा होता है और घरों में पकवान बनाए जाते है और उसका भोग लगाया जाता है। शाम को सही मुहूर्त पर होलिका दहन किया जाता है। लोग देर रात तक नाचते और गाते है। होलिका दहन समाज की समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है।

होली के दिन सभी लोग एक दूसरे को रंग, गुलाल लगाते हैं और नाच गाना भी करते हैं और घर घर जाकर एक दूसरे को होली की बधाई देते हैं। होली के त्योहार के दिन सभी के घरों में मीठे पकवान बनाए जाते हैं, खास कर गुजिया बनाई जाती है, इसके अलावा विभिन्न प्रकार के नमकीन और मिठाई बनाने का रिवाज भी है। होली के दिन लोग पुरानी दुश्मनी को छोड़ कर एक दूसरे को गले लगा कर एक नई शुरुआत करते हैं और होली की बधाई देते हैं। होली के दिन दोपहर तक लोग रंग गुलाल और नाच गाना करते हैं और उसके बाद लोग नहा धोकर नए नए कपड़े पहनते हैं और सबसे मिलते जुलते हैं।

होली से जुडी की कुछ रोचक बाते :-

(1 ) शास्त्रीय संगीत का होली से गहरा संबंध है। हालांकि ध्रुपद, धमार और ठुमरी के बिना आज भी होली अधूरी है। वहीं राजस्थान के अजमेर शहर में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर गाई जाने वाली होली के गानों का रंग ही अलग है।

(2 ) संस्कृत साहित्य में होली के कई रूप हैं. जिसमें श्रीमद्भागवत महापुराण में होली को रास का वर्णन किया गया है। महाकवि सूरदास ने वसन्त एवं होली पर 78 पद लिखे हैं।

(3 ) मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के बारे में प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाने जाया करते थे। वहीं हिन्दी साहित्य में कृष्ण की लीलाओं में भी होली का विस्तार रूप से वर्णन किया गया है।

(4 ) शाहजहां के समय तक होली खेलने का मुग़लिया अंदाज़ ही बदल गया था। शाहजहां के ज़माने में होली को ‘ईद-ए-गुलाबी’ या ‘आब-ए-पाशी’ (रंगों की बौछार) कहा जाता था।

(5) अकबर का जोधाबाई के साथ तथा जहांगीर का नूरजहां के साथ होली खेलने का वर्णन इतिहास में है। अलवर संग्रहालय के एक चित्र में जहांगीर को होली खेलते हुए दिखाया गया है।

होली का त्योहार आकर्षक और मनोहर रंगों का त्योहार है, यह एक ऐसा त्योहार है जो हर धर्म, संप्रदाय, जाति के बंधन की सीमा से परे जाकर लोगों को भाई-चारे का संदेश देता है। इस दिन सारे लोग अपने पुराने गिले-शिकवे भूल कर गले मिलते हैं और एक दूजे को गुलाल लगाते हैं और एक-दूसरे को होली के पावन पर्व की शुभकामनाएँ देते हैं।

होली अंदर के अहंकार और बुराई को मिटा कर सभी के साथ घुल-मिलकर, भाई-चारे, प्रेम और सौहार्द्र के साथ रहने का त्योहार है। बच्चे अपनी इच्छानुसार रंग और गुलाल और पिचकारी खरीदते हैं और लोगों को रंगों से सराबोर करने का आनंद उठाते हैं। हमें इस बात को समझना होगा कि होली मिल-जुलकर, प्रेम से रहने और जीवन के रंगों को अपने भीतर आत्मसात करने का त्योहार है। इसलिए रंगों का प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए और पानी या रंग भरे बैलून चलाने से बचना चाहिए। होली का त्योहार हमें हमेशा सन्मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। होली का त्योहार सामाजिक सद्भावना का प्रतीक है। इस त्योहार के कारण लोगों में सामाजिक एकता की भावना मजबूत होती है।

 

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