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सौरमंडल में चमक बिखेर रहा है धूमकेतु

तानिया शर्मा

हरे रंग में रंगा एक धूमकेतु इन दिनों धरती के करीब आ पहुंचा है। विज्ञानियों समेत स्टार गेजिंग का शौक रखने वालों की नजर इस पर जमी हुई है। यह 12 दिसंबर को पृथ्वी के सर्वाधिक करीब पहुंचने जा रहा है। बीती रात एस्ट्रोफोटोग्राफर राजीव दूबे ने इसकी खुबसूरत तस्वीर कैमरे में कैद की।

वरिष्ठ खगोल विज्ञानी डा शशिभूषण पांडेय के अनुसार

आर्यभटट् प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के वरिष्ठ खगोल विज्ञानी डा शशिभूषण पांडेय के अनुसार साल के आखिरी दिनों का सर्वाधिक चमकीला धूमकेतु आसमान की गहराइयों में हरे रंग में चमक बिखेरता नजर आ रहा है। खगोल प्रेमियों को इसे सुदूर आसमान में खोज पाना जितना मुस्किल है, आधी रात के बाद ठंड में जागना भी चुनौती से कम नहीं। इस धूमकेतु का नाम सी 2021 ए1 लिओनार्ड है।

जीई लिओनार्ड ने की खोज

इसी वर्ष विज्ञानी जीई लिओनार्ड ने तीन जनवरी को इसे खोजा था। 12 जनवरी को पृथ्वी के सर्वाधिक करीब पहुंचने पर इसकी दूरी 34.9 मिलियन किमी रह जाएगी, जबकि 18 को वह सौरमंडल के सबसे सुंदर ग्रह वीनस के करीब होगा। तब वीनस व इसके बीच की दूरी 4.2 मिलीयन किमी रह जाएगी। इसे नग्न आंखों से देख पाने का मौका तीन जनवरी को मिलेगा। तब वह सूर्य के करीब जा पहुंचेगा। साथ ही इसकी पूंछ की लंबाई भी बढ़ चुकी होगी और चमक भी संभवत: पहले के मुकाबले अधिक होगी। इस बीच इसे देखने के लिए बायनाकूलर की जरूरत पड़ेगी। बड़ी तेजी से सूर्य की ओर बढ़ रहा है।

भोर में तीन बजे ली तस्‍वीर

पिछले कई दिनों से इस कामेट की तलाश में जुटे एस्ट्रोफोटोग्राफर राजीव दूबे ने बताया कि बीती रात दो बजे वह साथी हिमांशु जोशी के साथ नगर से दूर हिमालय दर्शन जा पहुंचे और कैमरे की आंख की नजर से इस धूमकेतु को खोजते रहे और तड़के तीन बजे गहरे हरे रंग में रंगा नजर आ रहा था। इसके बाद हर एंगल से इसकी तस्वीर लेनी शुरू कर दी और छायाकारी का सिलसिला भोर तक जारी रहा।

सौरमंडल के आकर्षक सदस्य हैं धूमकेतु

डा शशिभूषण पांडेय के अनुसार धूमकेतु हमारे सौरमंडल के आकर्षक सदस्य हैं, जो अंतिम छोर में रहते हैं और ग्रहों की तरह सूर्य की परिक्रमा करते हैं। इनमें बर्फ होने के कारण सूर्य की रोशनी से चमकदार नजर आते हैं। सूर्य के नजदीक पहुंचने पर इनकी बर्फ व उल्काओं की लंबी पूंछ निकल आती है। जो लाखो किमी तक लंबी हो जाती है। जिस कारण इन्हें पुच्छल तारा भी कहा जाता है। सूर्य के नजदीक पहुंचने पर कभी-कभी सूर्य में समा जाते हैं।

आसमानी आतिशबाजी की वजह हैं धूमकेतु

आसमानी आतिशबाजी का रोमांच धूमकेतुओं से पैदा होता है। जब यह पृथ्वी के करीब से पहुंचते हैं तो धरती के पाथ पर उल्काओं का भंडार छोड़ जाते हैं और जब पृथ्वी के उल्काओं से होकर गुजरती है तो इसके वातावरण में आते ही उल्काएं जलने लगती हैं और आतिशी नजारा देखने को मिलता है। जिसे आम भाषा में टूटता तारा भी कहा जाता है। धरती पर जल लाने का श्रेय भी संभवत: धूमकेतुओं को ही दिया जाता है। इन सब खूबियों के कारण खगोलविदों की नजर इनमें पर जमी रहती हैं।

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