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कुछ दिन तो गुजारिए राजस्थान में…भाग -1 हाड़ी रानी का इतिहास

इतिहास इस बात का साक्षी है कि महापुरूषों के निर्माण में नारी का प्रत्यक्ष या परोक्ष योगदान रहा है। कहीं नारी प्रेरणास्त्रोत रही है तो कहीं शक्ति। राजस्थान में समय-समय पर ऐसी अनेक नारियां हुई हैं, जिन्होंने आदर्श कायम किया।

राजस्थान के इतिहास की एक अविस्मरणीय घटना है। जिसमें एक रानी ने विवाह के सिर्फ 7 दिन बाद ही अपना शीश अपने हाथों से काटकर युद्ध के लिए तैयार अपने पति को भिजवा दिया, ताकि उनका पति अपनी नई नवेली पत्नी की खूबसूरती में उलझकर अपना कत्र्तव्य ना भूल जाएं। कहा जाता है कि एक पत्नी द्वारा अपने पति को उसका फर्ज याद दिलाने के लिए किया गया इतिहास में सबसे बड़ा बलिदान यही है ।
यह रानी और कोई नहीं, बल्कि बूंदी के हाड़ा शासक की बेटी थी और उदयपुर (मेवाड़) के सलूम्बर ठिकाने के रावत चूड़ावत की रानी थी। इतिहास में यह हाड़ी रानी के नाम से प्रसिद्ध है।
हाड़ी रानी एक ऐसी रानी थी, जिन्होंने न तो शासन की बागडोर संभाली और न ही उन्होंने रणभूमि में अपने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन किया। लेकिन उनके जीवन में घटी एक घटना ने ही उन्हें अमरत्व प्रदान किया। उन्होंने अपनी समस्त आशाओं, आकांक्षाओं और भविष्य के सुनहरे सपनों को ही मातृभूमि की बलिवेदी पर नहीं चढ़ाया, वरन् स्वयं को अपने पति के कत्र्तव्य मार्ग में बाधक जानकर अपने जीवन का बलिदान कर दिया।
हाड़ी रानी की रावत चुण्डावत के साथ हुई शादी का गठजोड़ा खुलने से पहले ही चुण्डावत को मेवाड़ के महाराणा राजसिंह का औरंगजेब के खिलाफ मेवाड़ की रक्षार्थ युद्ध का फरमान मिला। चुण्डावत ने यह समाचार जब अपनी पत्नी हाड़ी रानी को सुनाया तो अपने वीर पति की वीरता से रोमांचित रानी प्रसन्न हो उठी, उसने सोचा मेरा जीवन धन्य हो गया, जो मुझे ऐसे वीर पति मिले। मैं आदर्श क्षत्राणी धर्म का पालन करुंगी। हाड़ी रानी ने अपने हाथों से अपने पति को अस्त्र-शस्त्र धारण कराये, टीका लगाया और आरती उतार कर युद्ध क्षेत्र के लिए विदा किया।
चुण्डावत सरदार ने सेना के साथ युद्ध क्षेत्र के लिए प्रस्थान किया किन्तु जाते समय उन्हें अपनी नव-विवाहिता पत्नी की याद सताने लगी। उन्होंने अपने एक सेवक से कहा, ”जाओ! रानी से कोई निशानी लेकर आओ।ÓÓ सेवक ने जाकर सरकार का संदेश सुनाया। रानी ने सोचा युद्ध क्षेत्र में भी उन्हें मेरी याद सतायेगी तो वे कमजोर पड़ जायेंगे, युद्ध कैसे कर पाएंगे। मैं उनके कत्र्तव्य में बाधक नहीं बन सकती। यह सोचकर हाड़ी रानी ने सेवक के हाथ से तलवार लेकर सेवक को अपना सिर ले जाने का आदेश देते हुए तलवार से अपना सिर काट डाला। सेवक रानी का कटा सिर अपनी थाली में लेकर, सरदार के पास पहुॅंचा। रानी का बलिदान देखकर चुण्डावत की भुजाएं फड़क उठी। उत्साहित सरदार तलवार लेकर शत्रु दल पर टूट पड़े और वीर गति को प्राप्त हुए।

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