महिला सशक्तिकरण के बारे में जानने से पहलें हमें समझ लेना चाहिए इसका वास्तविक मतलब क्या है? सशक्तिकरण से मतलब महिलाओं की उस क्षमता से है जिससे उनमें ये योग्यता आ जाती है जिससे वे अपने जीवन से जुडे सभी निर्णय ले सकें। लेकिन कभी-कभी हमारी सोच ही हमें कमजोर बना देती है जैसे कई बार हम स्वयं अपने लिए निर्णय नहीं ले पाते हम बहुत ही असमंजस की स्थिति में पड जाते हैं। मैं यहाँ पुरूषों का दोष नहीं मानती क्योंकि निर्णय लेने न लेने का दोष मेरा स्वयं का है। जब महिलाओं को बेचारी कहा जाता है तो इसमें भी दोष मेरा अपना ही है क्योंकि मेरी सोच ने ही मुझे बेचारी बना दिया है। नारी किसी भी काल में बेचारी नहीं थी चाहे वो प्राचीनकाल हो या मध्यकाल हो या वर्तमानकाल हो उसने हर काल में अपने धैर्य अपनी क्षमताओं का परिचय दिया है तो सबसे पहलें हमें अपनी सोच को बदलना होगा और अपने अस्तित्व को पहचानना होगा। नारी न तो कभी बेचारी थी, न है और न होगी। मैं वो हूँ जो एक शरीर से दूसरे शरीर को बनाती है, मैं वो हूँ जो अपनी कोख से रानी लक्ष्मी बाई, सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, अब्दुल कलाम और महात्मा गाँधी जैसे महान् विचारों वाले शक्तिशाली निर्णय लेने वाले व्यक्तित्व को जन्म दे सकती है, तो नारी कभी भी बेचारी नहीं हो सकती।
जब मुझमें में है शक्ति सारी तो मैं क्यों कहलाऊँ बेचारी।
कीवर्डः सशक्तिकरण, व्यक्तित्व और अस्तित्व
डॉ. अल्का त्यागी
सहायक प्राचार्य,
कला विभाग,
बियानी गर्ल्स कॉलेज, जयपुर