राजस्थान के हॉस्पिटल में लिवर का सफल प्रत्यारोपण (सक्सेसफुल ट्रांसप्लांट) ….डॉक्टरों की टीम ने किडनी ट्रांसप्लांट कर बचाई जान।
पिछले एक साल के दौरान आपने प्रदेश के कई प्राइवेट हॉस्पिटल के ऐसे दावे देखे और सुने होंगे। अब ये सारे दावे सवालों के घेरे में आ गए हैं।
ये सवाल उठ रहे हैं भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) की जांच में हुए खुलासे से। ACB ने सवाई मान सिंह (SMS) हॉस्पिटल में रुपए लेकर अंग प्रत्यारोपण (ऑर्गन ट्रांसप्लांट) की फर्जी NOC देने वाले को गिरफ्तार किया है।
जांच में खुलासा हुआ कि करीब 8 महीने से ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए बनाई गई डॉक्टरों की कमेटी की बैठक ही नहीं हुई है। यही कमेटी है, जो ऑर्गन ट्रांसप्लांट करने के लिए NOC जारी करती है।
ऐसे में बड़ा सवाल है कि जब कमेटी की बैठक ही नहीं हुई तो क्या ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए फर्जी एनओसी का सहारा लिया गया या ट्रांसप्लांट सिर्फ कागजों में ही कर दिए गए?
पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
ACB ने लेनदेन करते रंगे हाथ पकड़ा
एसीबी ने एसएमएस हॉस्पिटल में रविवार देर रात 1.30 बजे कार्रवाई करते हुए फर्जी एनओसी देने वाले सहायक प्रशासनिक अधिकारी गौरव सिंह और ईएचसीसी हॉस्पिटल के ऑर्गन ट्रांसप्लांट को-ऑर्डिनेटर अनिल जोशी को लेनदेन करते रंगे हाथ पकड़ा।
एसीबी ने मौके से 70 हजार रुपए और 3 फर्जी एनओसी लेटर भी जब्त किए हैं। कार्रवाई के बाद रात को ही एसीबी के अधिकारी गौरव सिंह और अनिल जोशी के घर और अन्य ठिकानों पर भी सर्च की। सर्च की कार्रवाई सोमवार सुबह 5 बजे तक चली।
इनकी गिरफ्तारी से खुलासा हुआ कि फोर्टिस हॉस्पिटल का को-ऑडिनेटर विनोद सिंह कुछ समय पहले पैसा देकर फर्जी सर्टिफिकेट लेकर गया है। एसीबी ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया। सरकार ने ईएचसीसी हॉस्पिटल के ऑर्गन ट्रांसप्लांट का लाइसेंस सस्पेंड कर दिया है।
नेपाल और बांग्लादेश के लोगों के दस्तावेज मिले
एसीबी डीआईजी डॉक्टर रवि ने बताया- जांच के दौरान गौरव सिंह के घर से 150 से अधिक सर्टिफिकेट मिले। आरोपी के पास जो तीन सर्टिफिकेट मिले, वह तीनों नेपाल के लोगों के थे। इससे साफ है कि ये लोग बाहर के लोगों से ऑर्गन की खरीद-फरोख्त कर रहे थे।
करीब 35 सर्टिफिकेट तैयार थे, जिसे देना बाकी था। इन सभी सर्टिफिकेट के साथ-साथ एसीबी ने आरोपियों के लैपटॉप, हार्ड डिस्क और कुछ अन्य वस्तु जब्त कर ली हैं। एसीबी ने तीनों आरोपियों को कोर्ट में पेश कर चार दिन का रिमांड लिया है।
पिछले 8 माह से कमेटी की बैठक नहीं
राजस्थान में ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए एनओसी के लिए स्टेट लेवल को-ऑर्डिनेट सेंटर एसएमएस हॉस्पिटल में है। इसमें चार डॉक्टरों की कमेटी बनाई हुई है। जांच में सामने आया कि कमेटी की पिछले 8 महीने से बैठक ही नहीं हुई है।
ऐसे में साफ है कि इस कमेटी की अधिकृत मीटिंग के बिना ही रैकेट में शामिल लोग एनओसी जारी कर देते थे। इस पूरे मामले में उच्च स्तर पर मेडिकल स्टाफ की मिलीभगत और अंगों की तस्करी की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
एसीबी के अधिकारियों ने नाम न छापने पर बताया कि अगर कमेटी समय-समय पर बैठक लेती तो यह फर्जी सर्टिफिकेट जारी नहीं होते। कमेटी ने पिछले 8 माह में बैठक क्यों नहीं की, इसकी जांच की जाएगी।
हॉस्पिटल के सभी दस्तावेजों को जब्त कर लिया गया है। एसीबी ने उस कमरे को भी सील कर दिया है, जहां पर आरोपी गौरव बैठ कर फर्जी सर्टिफिकेट जारी किया करता था। एसीबी इन तीनों से होने वाले पूछताछ के बाद कमेटी के सदस्यों से भी पूछताछ करेगी। पहले नोटिस जारी होंगे, जिसके बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।
अंग तस्करी से इनकार नहीं कर रही एसीबी
डॉ. रवि ने बताया कि फर्जी सर्टिफिकेट जारी कर कई सर्जरी की गई है और कई सर्जरी होने वाली हैं। दस्तावेजों की जांच करने के बाद अस्पतालों को लिखा जाएगा कि इन केस में सर्जरी न की जाए। इसमें जो एनओसी जारी हुई है वह गलत है। इसे लेकर एसीबी कमेटी के सदस्यों से भी आने वाले दिनों में मदद ले सकती है।
एसीबी ने पहली बार पीसी एक्ट के साथ-साथ फर्जी दस्तावेज तैयार कर आर्गन डोनेट करने की धाराएं लगाई हैं। हॉस्पिटल के डॉक्टरों की इस पूरे केस में मिलीभगत के सवाल पर एसीबी अभी कुछ नहीं कह रही।
हालांकि एसीबी के डीआईजी का कहना है कि जो भी जांच के दायरे में आएंगे, उनसे पूछताछ होगी। इस केस में इंटरनेशनल पेशेंट भी शामिल हैं। अगर वह ऑर्गन ट्रांसप्लांट कराते हैं तो उन्हें भी एनओसी लेनी पड़ती हैं।
ट्रांसप्लांट को मंजूरी देने वाली कमेटी में ये लोग शामिल
एसएमएस मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. राजीव बगरहट्टा, ट्रॉमा सेंटर के इंचार्ज डॉ. अनुराग धाकड़, कार्डियक सर्जन डॉ. रामकुमार यादव, एसएमएस हॉस्पिटल के अधीक्षक डॉ. अचल शर्मा, एक-एक डॉक्टर नेफ्रोलॉजी और गेस्ट्रॉलोजी। इनके अलावा दो सामाजिक कार्यकर्ता जो अंगदान के क्षेत्र में काम करते हैं।
एनओसी देने की प्रक्रिया
एसएमएस हॉस्पिटल के अधीक्षक और ऑर्गन ट्रांसप्लांट कमेटी के सदस्य डॉ. अचल शर्मा के मुताबिक, ऐसे हॉस्पिटल जिनको ऑर्गन ट्रांसप्लांट का अप्रूवल है। उसमें ऑर्गन ट्रांसप्लांट के केसों के लिए सरकार कमेटी बनाती है। यह कमेटी एसएमएस हॉस्पिटल में है।
कमेटी के पास जब कोई लिवर या किडनी ट्रांसप्लांट का केस आता है तो सबसे पहले डोनर और रिसीवर का ब्लड रिलेशन जांच करते हैं। अगर वह ब्लड रिलेशन में होता है तो दोनों (रिसीवर और डोनर) की मेडिकल जांच होती है और उसकी रिपोर्ट के आधार पर एनओसी जारी की जाती है। इस प्रक्रिया में थोड़ा समय लगता है।
अगर कोई ब्लड रिलेशन में व्यक्ति खास न होकर रिलेटिव है तो उस रिलेटिव की बैंक खातों की जांच भी करवाई जाती है, जो जिला प्रशासन की मदद से होती है। प्रशासन उसकी पूरी जांच करके हमें रिपोर्ट देता है, उसके बाद हम यहां से एनओसी जारी करते हैं। ये जांच इसलिए की जाती है, ताकि ये सुनिश्चित हो सके कि अंग का दान हुआ है न कि उसे बेचा गया है।
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