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जन-जन तक पहुंचे कत्थक : डा. शशि सांखला

महज तीन साल की उम्र में कथक नृत्य की शुरूआत कर इसे अंतरष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान दिलाने वाली प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना शशि सांखला का मानना है कि कत्थक हमारी धरोहर है जिससे जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत है। जयपुर कत्थक केन्द्र की प्रिंसिपल शशि सांखला को संगीत नाटक अकादमी से लेकर कई पुरूस्कारों से नवाजा जा चुका है । देश विदेशों में कत्थक की कई प्रस्तुतियां देने वाली शशि कत्थक गुरू के नाम से जानी जाती है। कत्थक नृत्य की शुरूआत से नई पीढ़ी में कत्थक के रूझान को लेकर बियानी टाइम्स की टीम ने उनसे खास बातचीत की। शशि सांखला से हुई बातचीत के प्रमुख अंश
जागरूकता की जरूरत :
कत्थक गुरू शशि सांखला का मानना है कि कत्थक महज एक नृत्य नहीं है ये हमारी धरोहर है और इसे जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत है। जो कथा कहे वही कत्थक है । कथक पौराणिक काल से चला आ रहा है ।ऐसा माना जाता है कि भगवान राम के जमाने से कत्थक हमारी जिंदगी में आया और आज भी चला आ रहा है। इसमें नृत्य के साथ- साथ भाव-भंगिमाओं का भी विशेष योगदान होता है। हालांकि राजस्थान में अभी कथक को लेकर जागरूकता की कमी है। घर -घर में कथक को लेकर जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है।
कत्थक एक साधना:
कत्थक एक साधना है जो हमें अनुशासन सिखाता है और जीवन में इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसमें भावों का ज्यादा महत्व है और शरीर की कई मुद्राएं बनाई जाकर उनके जरिए अभिव्यक्ति की जाती है। सत्य को पाने के लिए जैसे लगन और मेहनत की जरूरत होती है कत्थक में भी निपूणता के लिए मेहनत, लगन और समर्पण की जरूरत होती है। सबसे बड़ी बात है कत्थक हमारे देश की एक कला है जिसे सभी को जानना चाहिए ।
महिला – पुरूष का भेद नहीं :
कत्थक में महिला और पुरूष का भेदभाव नहीं हैं । ये सभी के लिए उपयोगी है। मेरे तो सभी गुरू पुरूष ही रहे हैं ।महिलाओं के साथ साथ अगर कथक में पुरूष भी आगे आएं तो उन्हें भी बेहतर पैकेज और सुविधाएं मिल सकती है । हमें अपना नजरिया बदलने की जरूरत है । फिल्मों ने मुजरा और कथक को ग्लैमराइज किया है । कई गानों में अब कम ही सही लेकिन कथक को स्थान मिलने लगा है । दरअसल कत्थक और मुजरा में ये ही अंतर है कि जब कत्थक को बैठ कर किया जाता है तो उसे मुजरा कहा जाने लगा। खासकर महफिलों में और तवायफों के घरों में मनोरंजन के लिए मुजरा किया जाने लगा । लेकिन कत्थक का ही रूप है मुजरा लेकिन जगह की वजह से इसे हेय दृष्टि से देखा जाने लगा । इसमें भी धीरे – धीरे परिवर्तन आने लगा है और लोगों का नजरिया कला को लेकर अब बदलने लगा है।
कत्थक को बनाएं करियर :
युवा कत्थक को करियर के रूप में देख सकते हैं इसके लिए स्कूलों और कॉलेजों में भी कथक की शुरूआत होनी चाहिए । ये अच्छी बात है कि कई विश्वविद्यालयों में अब कत्थक को लेकर पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं और कथक में पीएचडी भी करवाई जा रही है। इसे आगे बढाने की जरूरत है । मैंने 3 साल की उम्र में कत्थक करना शुरू किया था। इसी में अपना करियर बनाया और कई देशों में अपनी प्रस्तुतियां दी है और आज कथक केन्द्र की प्राचार्य भी हूं । कत्थक ही है जिसने मुझे हमेशा कुछ नया करने की प्रेरणा दी है।

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