अब तक जो टॉयलेट उपयोग में लिए जा रह है उनमे एक बार फ्लश करने पर 12-15 लीटर पानी बह जाता है और भारत जैसे देश में जहा पर गर्मी के मौसम में अधिकतर जगह पर जहा लोगो को पीने का पर्याप्त पानी भी उपलब्ध नहीं होता वह पर फ्लश में 12 से 15 लीटर पानी बहा देना एक चिंता का विशे है ऐसे में आईआईटी कहाद्ग्पुर द्वारा बनाया गया यह बायो टॉयलेट बहुत ही मददगार साबित होगा. यही कारन है कि इस मॉडल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वच्छ भारत अवार्ड दिया गया है. नेशनल थर्मल पॉवर कारपोरेशन(एनटीपीसी) इसका पहला पार्टनर बना है उसने नॉएडा में पहला बायो टॉयलेट बनवाया है. हमारे गाँव में पहले से ही खुले में शौच की सबसे बड़ी समस्या है जिसके निपटारे के लिए स्वच्छ भारत मिशन के तहत सरकार द्वारा घर में टॉयलेट बनवाने के लिए प्रोत्साहन राशी भी दी जा रही है लकिन वह पर भी सबसे बड़ी समस्या पानी की है. ऐसे में यह बायो टॉयलेट वहा के अनुरूप साबित होगा. क्यूंकि ये शौचालय आत्मनिर्भर है और इसमें पानी की निरंतर आपूर्ति की आवश्यकता नहीं है एक बार 500 लीटर पानी भर देने के बाद यह पानी को रीसायकल कर 5 सदस्यों के परिवार द्वारा जीवनभर इस्तेमाल में लिया जा सकता है.
आमतौर पर सामान्य शौचालयों में प्रति फ्लश पर ताज़े पानी की आपूर्ति की आवश्यकता होती है लेकिन इस बायो टॉयलेट को ताज़े पानी की आपूर्ति की आवश्यकता नहीं होती है क्यूंकि इसमें लगे माइक्रोबायल फ्यूल सेल(एमएफसी) पानी को रीसायकल कर उसको दोबारा उपयोग में लेने योग्य बना देते है. स्वच्छ पानी को शौचालय के उपर बने टैंक में भेजा जाता है जहा से उसे दोबारा उपयोग में लिया जा सकता है. इतना ही नहीं शौचालय के सेप्टिक टैंक में एलेक्ट्रोजेनिक बेक्टीरिया है जो मानव अपशिष्ट पर काम कर बिजली उत्पन्न करते है. दिन के समय बिजली का उपयोग फ़ोन चार्ज करने में लिया जा सकता है. यह शौचालय गाँव के लिए आदर्श साबित हो सकते है जहा लोगो को खुले में शौच करने जाना पड़ता है. जैव विद्युत् शौचालय में एक छ-कक्षीय रीएक्टर है जो पानी को साफ कर उसे दोबारा उपयोग के लायक बनाते है. इस प्रकार के नवाचार से जहा एक और गाँव में लोगो को बेहतर सुविधा दी जा सकती है वही पनी की बर्बादी को भी रोका जा सकता है.